हर कहानी में हीरो और विलेन नहीं होता.. हर कहानी की हैपी एंडिग भी नहीं होती, बल्कि कुछ कहानियां खुद में ही इतनी उलझ जाती हैं जिनका कोई अंत नहीं होता। कुछ ऐसी अनुसलझी कहानियां लेकर आया है नेटफ्लिक्स.. जी हां, हम बात कर रहे हैं करण जौहर के धर्मेटिक प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म ‘अजीब दास्तां’ की, जो नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है। इसके टीजर और ट्रेलर काफी दिनों से सुर्खियों में हैं, जिससे दर्शकों में इस फिल्म के लिए खास दिलचस्प जाग चुकी है। अगर आप भी इसे ‘देखने की सोच रहे हैं, तो इससे पहले आप ये रिव्यू Ajeeb Daastaans review जरूर पढ़ लें।
प्यार और कशमकश में उलझी चार कहानियां
दरअसल, लस्ट स्टोरीज़ और हॉरर स्टोरीज़ के बाद एक बार फिर करण जौहर नेटफ्लिक्स के दर्शकों के लिए चार कहानियों की सौगात लेकर आए हैं। ‘अजीब दास्तां’ आपको चार अतंरगी कहानियों के जरिए एक नई दुनिया में ले जाती है, जहां प्यार तो है पर नफरत भी है, जहां लगाव भी है भेदभाव भी । असल में, एंथोलॉजी ‘अजीब दास्तान’ चार निर्देशकों शशांक खेतान, राज मेहता, नीरज घेवान और कायोज ईरान द्वारा निर्देशित चार कहानियों का एक शोकेस है। तो चलिए इस रिव्यू Ajeeb Daastaans review की शुरूआत इन कहानियों के साथ करते हैं
कहानी मजनू
पहली कहानी नए शादीशुदा जोड़े लिपाक्षी और बबलू (फातिमा सना शेख और जयदीप अहलावत) की है, जिसे नाम दिया गया है मज़नू का और इसका निर्देशन किया है शंशाक खेतान ने। कहानी कुछ यूं है कि बबलू शादी की पहली ही रात लिपाक्षी को ये बताता है कि उसने शादी सिर्फ परिवार वालों के दबाव में की है, इसलिए लिपाक्षी उससे कोई उम्मीद न रखें। पर लिपाक्षी कोई सीधी शादी लड़की नहीं है जो अपनी किस्मत पर रोए, बल्कि वो पति की बेरूखी को देख किसी दूसरे शख्स में प्यार ढ़ूढ़ती है। इसी बीच लिपाक्षी और बबलू की जिंदगी में राज की एंट्री होती है, जो दोनो का विश्वास जीत लेता है, लिपाक्षी उसके साथ भगाने को तैयार हो जाती है। पर ‘साहेब बेगम और गुलाम’ वाले इस लव ट्राय एंगल का अंत तो कुछ और ही होता है, जिसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।
कहानी खिलौना
दूसरी कहानी है खिलौना जिसे डायरेक्ट किया है राज मेहता ने। ये कहानी अमीर (कोठीवाले) और गरीब वर्ग (कटियावाले) के बीच के द्वंद को दिखाती है। इस कहानी का केंद्र हैं मीनल (नुसरत भरूचा) और उसकी छोटी बहन बन्नी। मीनल सोसाइटी के घरों में काम करके अपना और बिन्नी का पेट पाल रही है और सोसाइटी के बिजली के तारों पर कटिया डालकर अपने छोटे से घर में रोशनी और टीवी देखने का इंतजाम रखती है। पर एक दिन उसकी कटिया हटवा दी जाती है, जिसे दोबारा लगवाने की आस में वो एक नए घर में काम पकड़ती है, पर वहां एक रोज बड़ी अनहोनी होती है जिसका सीधा शक मीनल और उसकी बहन पर जाता है। ये अनहोनी इतनी वीभत्स है जिसकी कल्पना से भी रूह कांप जाए। ये अनहोनी क्या है ये हम फिलहाल आपको नहीं बताएंगे, क्योंकि हमारी कोशिश आपको रिव्यू Ajeeb Daastaans review देने की है। इसलिए फिलहाल अगली कहानी की बात कर लेते हैं।
कहानी गीली पुच्ची
अगली और तीसरी कहानी है ‘गीली पुच्ची’ जिसे नीरज घेवान ने निर्देशित किया है। इस कहानी में समलैंगिक रिश्तों की असहजता के साथ ही जातिगत भेदभाव की कड़वाहट भी दिखाई गई है। दरअसल, इस कहानी का केंद्र हैं भारती मंडल (कोंकना सेन) और प्रिया शर्मा (अदिति राव हैदरी)। भारती सालों से एक फैक्टरी में बतौर मशीन-मैन काम करती है और वो लंबे समय से डाटा ऑपरेटर का पद पाने की कोशिश कर रही होती है। पर उसे ये नौकरी न देकर नई लड़की प्रिया को दे दी जाती है, जो बड़ी जाति से आती है। ऐसे में शुरुआत में भारती को प्रिया से थोड़ी टीस रहती है पर बाद में दोस्ती के बाद भारती को पता चलता है कि प्रिया भी बिलकुल उसकी जैसी है।
पर शादी के बंधन और सामाजिक दायरे ने उसे बांध रखा है। पर प्रिया अपनी सच्चाई को दिल से मानने को तैयार नहीं कि वो समलैंगिक है। हालांकि यहां भारती उससे कहीं अधिक मजबूत होती है, जो प्रिया को जिंदगी की नई राह दिखाने में मदद करती है। पर क्या ये राह प्रिया को रास आती है, सालों से जातिगत भेदभाव का दंश झेल रही भारती को आखिर में उसका मुकाम मिल पाता है, ये इस कहानी का सस्पेंस है, जो आपको देखने के बाद ही बता चल पाएगा।
कहानी अनकही
चौथी कहानी है ‘अनकही’ जिसे निर्देशक कायोज़ ईरानी ने पेश किया है। कहानी कुछ यूं है कि नताशा (शेफाली शाह) और रोहन (तोता रॉय चौधरी) एक बहद तनाव पूर्ण शादीशुदा जिंदगी में हैं। रोहन न तो अपनी पत्नी नताशा को समझता है और न ही बेटी समायरा को वक्त देता है। समायरा के साथ दिक्कत ये है कि धीरे-धीरे सुनने की क्षमता जा रही है। ऐसे में नताशा अपनी बेटी समायरा से बातचीत करने के लिए साइन लैंग्वेज सिखती है और फिर एक रोज उसकी मुलाकात फोटोग्राफर (मानव कौल) से होती है, जो सिर्फ एक ही भाषा जानता है साइन लैंग्वेज की। ऐसे में दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती हैं और वो साइन लैग्वज के जरिए प्यार की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश करते हैं। पर आखिर में नताशा के प्यार का अलग ही रंग देखने को मिलता है।
कुल मिलाकर चारों कहानियां आपको हैरान करती हैं, इन कहानियों का अंत कुछ ऐसा है, जो दर्शक सोच भी नहीं पाता है। इस तरह से ये कहानियां शुरूआत से ही जो दिलचस्पी पैदा करती हैं, वो अंत में अलग ही कशमकश के साथ खत्म होती है।
अभिनय की कसौटी
‘अजीब दास्तां’ की हर कहानी अपने आप में बेहद पेंचीदा हैं, जिनमें प्रेम, नफरत, द्वेष, भेदभाव, ममता और लालच सब कुछ दिखता है और इन सारे भावों को बेहद संजीदगी से उतारा है इसके कलाकारों ने। कहानी मजनू में जयदीप अहलावत जहां बबलू भैया जैसे रसूखदार किरदार में बेहद जंचते हैं और उनके चेहरे पर अपने किरदार के गहरे राज के भाव भी दिखते हैं। वहीं खिलौना में नुसरत भरूचा ने मीनल के किरदार में बेहद स्वाभाविक अदाकारी है। तीसरी कहानी में कोंकणा सेन का अभिनय का ध्यान खींचता है। भारती के किरदार में उनके चेहरे पर जातिगत भेदभाव का दंश और पीड़ा साफ झलकती है। आखिरी और चौथी कहानी में मानव कौल और शेफाली शाह दोनों ने ही बेहद उम्दा काम किया है।
क्या हैं ख़ामियां
अगर बात करें फिल्म ‘अजीब दास्तां’ की ख़ामियों की तो एक फिल्म के तौर पर इसमें कोई ख़ामी नहीं दिखती है। चारों कहानियां रोचक हैं, निर्देशन से लेकर सिनेमेटोग्राफी भी अच्छी है और अभिनय ने तो मानों जान ही डाल दिया है। हां, अगर आप इसे मनोरंजन के लिए दर्शक के तौर पर देखने जाएंगे तो आपको ये परेशान कर सकती हैं। क्योंकि इसकी कहानियों में अलग ही तरह की संवेदना है, जो आपको झंकझोर कर रख देती हैं।
क्यों देखनी चाहिए
फिल्म ‘अजीब दास्तां’ उन लोगों के लिए है, जिन्हें मसाला फिल्मों से इतर अलग तरह की कहानियां पसंद आती हैं। अगर आप भी इस तरह की पसंद रखते हैं तो आपको ये जरूर देखनी चाहिए। इसके अलावा अगर आप मानव कौल, जयदीप अहलावत, नुसरत भरूचा या शेफाली शाह में से किसी के प्रशंसक हैं तो फिर तो ये फिल्म आपको देखनी बनती है, क्योंकि इस फिल्म में इन दिग्गज कलाकारों की असली अदाकारी उभर कर सामने आई है।
खैर बाकि आपकी मर्जी है कि फिल्म देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू Ajeeb Daastaans review पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।