Aar Ya Paar Review

Aar Ya Paar Review: जंगल की जंग में किसकी हुई जीत, जानिए कैसी है परेश रावल के बेटे आदित्य रावल की सीरीज ‘आर या पार’

जर, जोरू और जमीन… के अलावा मानवीय संघर्ष की एक वजह ‘जंगल’ भी रहा है। इंसान, जंगल से निकल कर सभ्य बना और जीने के लिए अलग दुनिया बनाई, शहर बसाए और उद्योग लगाए.. पर जंगल से उसका राब्ता फिर भी नहीं छूटा। कभी जंगली जानवरों के शिकार तो कभी संसाधनों के लालच में इंसान ने जंगल में दोबारा से घुसपैठ बनानी चाही और ऐसे में जंगल के असल बाशिंदों से उन्हें मुंह की खानी पड़ी। जंगल की इस जंग को बड़े पर्दे पर भी कई बार उतारा गया है, जिसका हालिया नमूना हॉलीवुड की चर्चित फिल्म ‘अवतार 2- द वे ऑफ वाटर’ और साउथ की ब्लॉक बस्टर फिल्म ‘कांतारा’ में देखने को मिला है। इस कड़ी में जंगल के लिए छिड़े जंग को आधार बना कर डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर वेब सीरीज ‘आर या पार’ आई है। जाहिर है कि सब्जेक्ट काफी अच्छा है लेकिन देखने वाली बात ये है कि आखिर ये सीरीज वास्तव में कैसी है, इसलिए हम लेकर आए हैं इसका रिव्यू (Aar Ya Paar Review)…

पढ़े वेब सीरीज ‘आर या पार’ का रिव्यू (Aar Ya Paar Review) हिंदी में

सबसे पहले बात कर लेते हैं इसकी कहानी की तो ये जंगल में रहने वाले आदिवासी और शहर के उद्योगपतियों के बीच की जंग को बयां करती हैं। दरअसल, कहानी कुछ इस तरह है कि एक माइनिंग कंपनी के मुखिया रूबेन भट्टा (आशीष विद्यार्थी) को पता चलता है देगोहाटी नाम के जंगल में बेशकीमती खनिज यूरेनियम उपलब्ध है। ऐसे में वो पहले यहां रहने वाले जनजातियों को लालच दे उसे कीमति खनिज को पाने की पहल करता है। लेकिन जब वो जनजाति जंगल में किसी भी तरह के बाहरी अतिक्रमण का विरोध करती है तो वो लोग इन जनजातियों को ही मिटाने की कोशिश करते हैं।

जनजाति और शहर के उद्योगपतियों के बीच इस संघर्ष में कई आदिवासी मारे जाते हैं और फिर बाहरी लोगों के आक्रमण से नाराज हो जनजाति का एक युवा सरजू (आदित्य रावल) बदला लेने के लिए जंगल से बाहर शहर में आता है और नरसंहार शुरू कर देता है। लेकिन इन सबके बीच उसे एक दूसरा व्यक्ति पुलप्पा ऊर्फ लंगड़ा त्यागी (दिब्येंदु भट्टाचार्य) भी इस्तेमाल कर रहा होता है जो असल में एक कॉन्ट्रेक्ट किलर है और आदिवासियों को प्रशिक्षित कर किलर्स के तौर पर उनसे काम करवाता है। उधर स्पेशल क्राइम ब्रांच के अफसर (सुमीत व्यास) को शहर में जनसंहार कर रहे जनजाति युवा सरजू की तलाश है। ऐसे में जंगल को बचाने और अपनों की मौत बदला लेने निकले सरजू का क्या अंजाम होता है यही इस सीरीज का असली रोमांच है। फिलहाल हम यहां उसका खुलासा नहीं करेंगे, क्योंकि बात सीरीज के रिव्यू (Aar Ya Paar Review) की है तो हम अभिनय और बाकी पक्षो पर बात कर लेते हैं।

अभिनय की कसौटी पर खरे उतरे परेश रावल के बेटे आदित्य रावल

अभिनय की बात करें तो बता दें कि इस सीरीज में परेश रावल के बेटे आदित्य रावल ने सरजू का लीड रोल निभाया है। आदिवासी युवा के किरदार में उन्होनें अपने से पूरी जान डालने की कोशिश है.. जैसे कि भौचक्काई आंखों से शहरी जनजीवन को देखने का उनका अभिनय प्रभावी लगता है। तीर अंदाजी और एक्शन सीन में भी अच्छा कर गए हैं। उनके किरदार की एक ही कमी है बोली जोकि सभी अदिवासी किरदारों के साथ लगती है। दरअसल, मेकर्स जनजाति के रूप में किरदारों की बोली पर सही काम नहीं कर पाए हैं ऐसे में कई बार बोलते हुए आदिवासी किरदार गढ़े हुए से लगते हैं।

अब बात करें दूसरे किरदारों की तो सीरीज के खलनायक रूबेन भट्टा के रूप आशीष विद्यार्थी हमेशा की तरह जंचे हैं। उनका चेहरा और भाव भंगिमा एक क्रूर व्यवसायी के रूप में उन्हें पेश करता है। वहीं पुलप्पा ऊर्फ लंगड़ा त्यागी की भूमिका में दिब्येंदु भट्टाचार्य जंचे हैं तो सुमित व्यास और पत्रलेखा भी अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय करते नजर आए हैं।

इस तरह से कलाकारों ने अपने हिस्से का काम तो सही ही किया है। जो कमी है वो है इनके चित्रण में.. खासकर जनजाति समूह का सीरीज में जिस तरह से चित्रण किया गया है वो वास्तविक कम, नाटकीय अधिक लगता है। अब आपको यहां पर बता दें कि इस सीरीज का लेखन अविनाश सिंह, विजय नारायण वर्मा और सिद्धार्थ सेनगुप्ता ने किया है तो निर्देशन ग्लेन बरेटो, अंकुश मोहला और नील गुहा का है।

क्यों देखनी चाहिए

अब बात करें कि ये सीरीज क्यों देखनी चाहिए या क्यों देख सकते हैं तो भले ही ये सीरीज आपको बहुत अधिक ऑथेंटिक न लगे पर इसकी कहानी में शुरू से लेकर अंत तक रोमांच बना रहता है। इसलिए नए साल के वीकेंड में अगर आपके पास बाहर जाकर पार्टी या जश्न करने का कोई प्लान नहीं है तो आप ओटीटी पर इस सीरीज को देख कर टाइम पास तो कर ही सकते हैं।

क्या है ख़ामियां

वहीं अगर कोई पूछे कि इसकी ख़ामियां क्या हैं तो जैसा कि हमने पहले ही बताया आदिवासी समाज की कहानी पर आधारित ये सीरीज कुछ हद तक किरदारों का सही चित्रण न होने के कारण बनावटी और नाटकीय लगती है।

उम्मीद करते हैं कि ये रिव्यू (Aar Ya Paar Review) आपको पसंद आया होगा, ओटीटी पर रिलीज होने वाली फिल्मों के रिव्यू और अधिक जानकारी के लिए Webhungama को फॉलो जरूर करें।

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