Sharmaji Namkeen review

Sharmaji Namkeen Review: कैसी है ऋषि कूपर की आखिरी फिल्म, यहां पढें ‘शर्माजी नमकीन’ का रिव्यू…

सिनेमा और अभिनय एक अभिनेता को मरने के बाद भी पर्दे पर जीवित होने का अवसर देतें है और ये बात तब और भी खास हो जाती है, जबकि वो वो किसी अभिनेता की अंतिम फिल्म हो। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) की आखिरी फिल्म ‘शर्माजी नमकीन की। बता दें कि फिल्म आज यानि कि 31 मार्च को अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज हो चुकी है और हम आपके लिए लेकर आए हैं इसका रिव्यू (Sharmaji Namkeen Review) …

गौरतलब है कि फिल्म ‘शर्माजी नमकीन’ (Sharmaji Namkeen) में भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली बार एक अनोखा प्रयोग किया गया है। असल में ऋषि कपूर के जाने के बाद इस फिल्म के आधे हिस्से में ऋषि का किरदार परेश रावल (Paresh Rawal) ने निभाया है। ऐसे में फिल्म के आधे हिस्से में ऋषि कपूर नजर आते हैं तो बाकी आधे हिस्से में परेश रावल। फिल्म की शुरूआत में ही ऋषि कपूर के बेटे और बॉलीवुड एक्टर रणबीर कूपर स्क्रीन पर आकर इस बात की जानकारी दे जाते हैं। वैसे देखा जाए तो मजबूरी में किया गया ये प्रयोग अलग तो है पर ये भी इस फिल्म की खासियत ही है।

चलिए सबसे फिल्म रिव्यू (Sharmaji Namkeen Review) की शुरूआत करते हैं इसकी कहानी से, क्योंकि लीड कलाकार के बाद दर्शकों के लिए किसी फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण उसकी कहानी ही होती है। तो फिल्म ‘शर्माजी नमकीन’ रिटायर्ड बीजी शर्मा की कहानी है, जोकि पश्चिमी दिल्ली के सुभाष नगर में अपने दो बेटों के साथ रहते हैं। रिटायरमेंट के बाद खुद को व्यस्त रखने के लिए शर्माजी अपनी कुकिंग हॉबी को आजमाना चाहते है, ऐसे में दोस्त उन्हें चाट कॉर्नर खोलने की सलाह देते हैं। पर बेटों को उनका ये आइडिया स्टेटस के खिलाफ लगता है।

ऐसे में शर्माजी बेटों से छुपकर दिल्ली की रईस महिलाओं की किट्टी पार्टियों में खाना बनाने का काम शुरू कर देते हैं। पर ये राज एक दिन खुल जाता है, जिसके बाद बेटें शर्माजी से नाराज हो जाते हैं। उधर उनका बड़ा बेटा अपनी सहकर्मी के साथ शादी करने का प्लान कर चुका है और उसके लिए 15 लाख का टोकन मनी देकर फ्लैट भी ले लिया है। पर फ्लैट के लिए विवाद शुरू होता है और टोकन मनी भी फंस जाती है। ऐसे में किस तरह से शर्माजी की उलझी हुई पारिवारिक परिस्थितियां सुलझती हैं और शर्माजी को उनकों बेटों की नजरों में खोई हुई अहमियत और मान-सम्मान कैसे मिलता है, फिल्म आगे इसी को बयां करती है।

कुल मिलाकर दिल्ली की पृष्ठभूमि पर रची गई ये कहानी काफी कुछ आपको अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘बाग़बान’ की याद दिलाती है, जिसमें अमिताभ का कैरेक्टर बेटों की अवहेलना झेलने के बाद अपनी लेखन कला के जरिए अपना खोया सम्मान पाता है। हालांकि फिल्म ‘शर्माजी नमकीन’ में बाग़बान जैसी चमक-धमक नहीं है पर इस फिल्म में बाग़बान का जिक्र जरूर है। फिल्म में एक डायलॉग है कि बागबान को बच्चों के कोर्स में कंपलसरी कर देना चाहिए। दरअसल, ऋषि कपूर की ये आखिरी फिल्म ऑफ्टर रिटायरमेंट लाइफ और मां-बाप के प्रति बच्चों के जवाबदेही की बात बेहद सीधेसादे और रोचक ढंग से करती है।

अब बात कर लेते हैं अभिनय की तो दिल्ली के ठेठ किरदार की नब्ज को ऋषि कपूर ने बाखूबी पकड़ा है और उनके जाने के बाद उतनी ही शिद्दत से परेश रावल ने भी उसे थामे रहने की कोशिश की है। फिल्म में ऋषि जी का सहज अभिनय देख इस दुनिया में उनकी कमी ख़लती है। वहीं फिल्म के दूसरे कलाकारों की बात करें तो ऋषि कपूर के साथ जूही चावला की केमेस्ट्री भाती है, खासकर जिन्होनें उन्हें 90 के दशकी की फिल्मों में साथ देखा है। वहीं सतीश कौशिक, शीबा चड्ढा और आयशा रजा जैसे कलाकार अपनी-अपनी भूमिकाओं में जंचे हैं।

फिल्म रिव्यू (Sharmaji Namkeen Review) की बात है तो निर्देशन का भी जिक्र जरूर कर लेना चाहिए तो देखा जाए तो यहां निर्देशक हितेश भाटिया ने काफी अच्छा काम किया है। क्योंकि लीड कलाकार के जाने के बाद दूसरे कलाकार के जरिए फिल्म की जीवंतता बनाए रखना अपने आप में एक बड़ा टास्क है, जिसे रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर जैसे निर्माताओं के सहयोग से हितेश भाटिया ने  बेहतरीन ढंग से निभाया है।

फिल्म रिव्यू (Sharmaji Namkeen Review) के आखिर हम इतना ही कहेंगे कि ये फिल्म वास्तव में एक दिग्गज अभिनेता को दी गई विनम्र और सुंदर श्रद्धांजली है, जो ऋषि के कूपर के फैंस के लिए किसी सौगात से कम नहीं है। वैसे अगर आप ऋषि कपूर के फैंस नहीं है तो भी ये फिल्म आपको निराश नहीं करती है, इसलिए इस फिल्म का आनंद अमेज़न प्राइम पर ले सकते हैं।

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