‘बार-बार बटन दबाने से लिफ्ट जल्दी नहीं आएगी… ये मौत की तरह है, जब आनी है तभी आएगी’… ये डायलॉग है सुनील ग्रोवर स्टारर वेब सीरीज ‘सनफ्लॉवर’, जोकि फिलहाल जी5 पर आ चुकी है। बीते दिनों ट्रेलर रिलीज होने के साथ ही ये डार्क कॉमेडी सीरीज सुर्खियों में रही है, खासकर सुनील ग्रोवर के फैंस काफी उम्मीदों के साथ इस सीरीज का इंतजार कर रहे थें। ऐसे में जानने वाली बात ये है कि ये सीरीज फैंस के उम्मीदों पर कितनी ख़री उतरी है। इसलिए हम लेकर आए हैं कि इस सीरीज का रिव्यू (Sunflower Review)…
मर्डर मिस्ट्री में कॉमेडी का तड़का, पर स्वाद पड़ा फीका
सबसे पहले बात कर लेते हैं ‘सनफ्लॉवर’ की कहानी तो बता दें कि ‘क्वीन’ और ‘सुपर 30’ जैसी सुपरहिट फ़िल्मों से इंडस्ट्री में नाम बनाने वाले फिल्ममेकर विकास बहल ने इस सीरीज की कहानी लिखी है। कहानी कुछ इस तरह है कि सनफ्लॉवर नाम की सोसायटी के एक पेंटाहाउस फ्लैट में रहने वाले राज कपूर (अश्विन कौशल) की एक दिन मौत हो जाती है। शुरुआती तफ्तीश में पुलिस को पता चलता है कि राज को एक केमिकल दिया गया था, जिसके चलते उसकी मौत हुई। जिसके बाद मर्डर मिस्ट्री वाले रोमांच के साथ ये कहानी आगे बढ़ती है।
पुलिस जांच में शक की सुई सोसायटी के कुछ लोगों के साथ घरेलू नौकरानी और बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड पर भी घूमती है। यहां शक की पहली सुई अटकती है सोसायटी के बैचलर सोनू सिंह (सुनील ग्रोवर) पर, जिसकी हरकतें तो बेवकूफी भरी हैं पर दिमाग ऐसा है कि एक ही साल में उसे अपनी कंपनी में बेस्ट एंप्लॉई, बेस्ट सेल्समैन और बेस्ट बिहेवियर का अवार्ड मिल चुका है। सोनू के बाद पुलिस की नजरों में सोसायटी का दूसरा संदिग्ध है, कपूर के सामने वाले फ्लैट में रहने वाला केमेस्ट्री का प्रोफेसर आहूजा (मुकुल चड्ढा), जिसके साथ कपूर की लड़ाई हो चुकी होती है।
इस तरह से देखा जाए तो ये सीरीज बॉलीवुड की मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्मों की तरह आपको शुरू से लेकर अंत तक घूमाती रहती है। इसमें पहले जान बूझकर किसी की तरफ शक की सुई धुमा दी जाती है, फिर वो बीच-बीच में इधर-उधर धूमती रहती है। लेकिन आखिर में वो शख्स कातिल निकलता है, जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था। ऐसे में अगर बात सीरीज के ईमानदार रिव्यू (Sunflower review) की करें तो मर्डर मिस्ट्री के नाम पर परोसी गई इस कहानी में वो रोमांच नहीं है, जो दर्शक आमतौर पर किसी क्राइम सीरीज से उम्मीद रखते हैं।
रही बात कॉमेडी की तो सुनील ग्रोवर ने अपने अंदाज में दर्शकों को हंसाने की भरपूर कोशिश की है। वहीं सीरीज के कुछ दूसरे अजीबो गरीब किरदार भी हास्य पैदा करने की कोशिश करते हैं, पर वास्तव ये सारा प्रयास असफल ही साबित होता दिखता है। दरअसल, 8 एपिसोड वाले सीरीज में डार्क कॉमेडी के साथ ही बहुत कुछ कहने की कोशिश की गई है, जैसे कि बीच-बीच में सोशल मैसेज देने का प्रयास हुआ है। पर, असल में एक साथ सब कुछ परोसने के चक्कर में सीरीज के मेकर्स कुछ भी ढंग का नहीं परोस पाए हैं।
लचर कहानी में सहज अदाकारी ने डाली जान
लचर कहानी के बावजूद अगर वेब सीरीज ‘सनफ्लॉवर’ किसी हद तक दर्शकों को आकर्षित करने में कामयाब होती है तो वो है इसका श्रेय कलाकारों को ही जाएगा। सोनू के किरदार में जहां सुनील ग्रोवर में रंग में रगें हुए नजर आते हैं तो वहीं सोसायटी के चेयरमैन दिलीप अय्यर के किरदार में आशीष विद्यार्थी भी जंचे हैं। इनके अलावा आंखों पर मोटे लैंस वाला चश्मा लगाये इनवेस्टीगेटिव ऑफ़िसर दिगेंद्र के रोल में रणवीर शौरी भी रोचक लगते हैं, जबकि तांबे के किरदार में गिरीश कुलकर्णी ने अपनी सहज अदाकारी से जान डाल दी है।
क्या हैं खामियां
इस सीरीज की सबसे बड़ी ख़ामी यही है कि डार्क कामेडी के नाम पर इसे देखने पर दर्शकों के हाथ कुछ भी लगता है.. न सस्पेंस, न थ्रिल और न ही कॉमेडी।
क्यों देखनी चाहिए
अगर बात करें कि ‘सनफ्लॉवर’ क्यों देखनी चाहिए तो कामकाजी लोगों के लिए वीकेंड का लुत्फ उठाने के लिए ये सीरीज अच्छा टाइम पास साबित हो सकती है।
खैर बाकि आपकी मर्जी है कि वेब सीरीज ‘’सनफ्लॉवर’ देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू (Sunflower Review) पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।
Excellent review.
But I hope sunil grover will be doing his best