Shaadisthan review

Shaadisthan review: शादी और समाज से आगे की सोच लेकर आई है ‘शादीस्तान’, पढ़ें रिव्यू

शादी, भारतीय समाज में शादी दो व्यक्तियों के बीच का बंधन नहीं बल्कि सामाजिक जीवन का स्तम्भ है और इस स्तम्भ को संभालने की जिम्मेदारी अक्सर स्त्री के कंधों पर ही होती है। इसलिए शायद औरत शादी के पाटे से जिंदगी भरी बंधे रहने के लिए मजबूर रहती है। भारतीय परिवेश में शादी, समाज को लेकर चली आ रही ही ऐसी सोच पर प्रहार करने आई है फिल्म ‘शादीस्तान’ और हम आपके लिए लेकर आए हैं इसका रिव्यू (Shaadisthan review) ।

आधुनिकता और परंपरागत रूढ़ियों के द्वंद की कहानी है ‘शादिस्तान’

डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर 11 जून को रिलीज हुई फिल्म ‘शादिस्तान’ (Shaadisthan ) अपने नाम के मुताबिक शादी के मुद्दे पर बात करती है। पर आमतौर पर जहां शादी की थीम पर बनी फिल्मों में गीत-संगीत से भरपूर पारिवारिक कहानी देखने को मिलती रही है। लेकिन डिजिटल एंटरटेनमेंट की दुनिया में आई ये फिल्म शादी के जरिए पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति पर सवाल करती है। कहानी की बात करें तो फिल्म ‘शादिस्तान’ मुंबई से राजस्थान के छोटे से गांव तक की एक रोड ट्रिप की कहानी है जो आधुनिकता और परंपरागत रूढ़ियों के बीच के द्वंद को दिखती है।

Shaadisthan trailer

असल में इस ट्रिप के दौरान एक बस में म्यूजिक बैंड के चार बिंदास युवाओं के साथ बेहद पारंपरिक ख्यालों वाले एक दंपति और उनकी एक बेटी सवार हैं। दरअसल, कहानी कुछ यूं है कि एक परिवार अपने रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिए राजस्थान जा रहा होता है। फ्लाइट छूटने के बाद इन्हें म्यूजिक बैंड की बस में सफर करना पड़ता है। ये परिवार अपनी लड़की की 18 साल की उम्र होते ही शादी करना चाहते हैं। जबकि लड़की ऐसा नहीं चाहती और वो अपने तरीके से इसका विरोध करती है।

Shaadisthan movie

ऐसे में 24 घंटे की इस ट्रिप के दौरान दो अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए लोगों के बीच विचारों के टकराव के साथ कुछ ऐसी घटनाएं भी होती हैं जो लड़की की मां को सोचने पर मजबूर करती है। खासकर म्यूजिक बैंड की युवती साशा की बातें लड़की की मां को दकियानूसी और सामंती सोच के खिलाफ सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। फिर आखिर में परिवार समाज की परवाह छोड़कर अपनी बच्ची के लिए खुशी स्वीकार करता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो फिल्म हैप्पी एंडिंग के साथ दर्शकों को शादी के मुद्दे पर विचार-विर्मश के लिए छोड़ जाती है।

डेब्यू डायरेक्टर के अच्छे प्रयास में बेहतर की रह गई गुंजाइश

ऐसे में कहानी और कंटेंट की दृष्टिकोण से देखा जाए तो ये फिल्म हल्के-फुल्के तरीके से सामाजिक संदेश देने वाली साबित होती है। पर यहां बात फिल्म रिव्यू (Shaadisthan review) की कर रहे हैं तो निर्देशन और अभिनय जैसे बाकी मुद्दों पर भी बात कर लेते हैं। गौरतलब है कि फिल्म ‘शादिस्तान’ के जरिए अभिनेता राज सिंह चौधरी (Raj singh chaudhary) ने डायरेक्टिंग फील्ड में अपना डेब्यू किया है। ऐसे में देखा जाए तो पहले ही प्रयास में इस फिल्म के जरिए राज सिंह चौधरी ने बड़ी बात रखने की कोशिश की है।

Shaadisthan film

पर असल में ये प्रयास मात्र ही है, क्योंकि फिल्म का मुद्दा काफी अच्छा था, जिसे और गहराई के साथ दिखाया जाना चाहिए था। यहां फिल्म में सिर्फ डायलॉग के जरिए बाते कहनें की कोशिश की गई है। जैसे कि साशा (Kirti kulhari ) का ये डायलॉग कि ‘हम जैसी औरतें लड़ती हैं ताकी आप जैसी औरतों को अपनी दुनिया में लड़ाई ना करनी पड़े’ सुनने में काफी प्रभावी लगता है। पर असल में इस मुद्दें को थोड़ी और गंभीरता और सिनेमाई कलात्मकता की जरूरत थी, जिसकी कमी फिल्म ‘शादीस्तान’ में साफ नजर आती है।

सधे हुए अभिनय ने सम्भाली फिल्म की लय-ताल

फिल्म में गीत-संगीत की भी बात होती है… सुरों और लय ताल की बात की गई है। पर देखा जाए तो खुद इस फिल्म में लय-ताल की कमी खलती है। ये फिल्म अपने ढंग से दर्शकों के सामने बाते रखती हैं, बिना उनके दिलों के तार छुए। ऐसे में कलाकारों का अभिनय ही है जिसने फिल्म में थोड़ी रूचि बंधती है। साशा के किरदार में कीर्ति कुल्हारी (kirti kulhari ) का अभिनय बेहद संजीदा है, तो वहीं लड़की मां-पिता की भूमिका में निवेदिता भट्टाचार्य और राजन मोदी के वास्तविक अभिनय ने फिल्म की कहानी में जान डाल दी है। वहीं छोटी सी भूमिका में के के मेनन भी जंचते हैं।

क्या हैं ख़ामियां

बात करें फिल्म शादीस्तान की ख़ामियां तो सामाजिक संदेश देने के उद्देश्य से बनाई गई इस फिल्म में न तो आम मनोरंजक फिल्म की तरह रोचकता है और न ही गंभीर फिल्मों वाली प्रभावशीलता। फिल्म रिव्यू (Shaadisthan review) के नजरिए से कहें तो अच्छे कंटेंट के बावजूद ये फिल्म उतनी प्रभावी नहीं बन पाई है कि कोई दर्शक के रूप में इसे याद रखे या दूसरे को इसे देखने के लिए सिफारिश करे।

क्यों देखनी चाहिए

अगर आपकी सोशल मुद्दों वाली फिल्मों में रूचि है तो आपको फिल्म शादीस्तान देखनी चाहिए। खासकर अगर आप स्त्री विमर्श में रूचि रखते हैं तो इस फिल्म के डायलॉग आपको प्रभावी लग सकते हैं। इसके अलावा कृति कुल्हारी के फैंस के लिए भी ये फिल्म बेहतर है.. फिल्म पिंक और क्रिमनल जस्टिस के बाद इस फिल्म में कृति कुल्हारी बेहद प्रभावी लगी हैं।

खैर बाकि आपकी मर्जी है कि फिल्म ‘शादिस्तान’ देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू (Shaadisthan review) पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।

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