सरकारी सिस्टम जब राजनीति और नौकरशाह की जाल बन जाती है तो इसमें आम आदमी के साथ अक्सर सरकारी मुलाजिम भी फंसते हैं, जिससे निकलने के लिए अधिकारी या तो भ्रष्टाचार का रास्ता पकड़ लेते हैं या फिर राजनीति का दामन। विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ भी सिस्टम के इसी जंगल की कहानी दिखाती है। टाइटल और स्टार कास्ट के चलते ये फिल्म बीते दिनों से काफी सुर्खियों में हैं, ऐसे में जानना जरूरी है विद्या बालन की इस दहाड़ में कितना दम है? इसलिए 2 घंटे की लंबी फिल्म देखने से पहले यहां पढ़ें ‘शेरनी’ का रिव्यू (Sherni Review) …
जंगल की कहानी के जरिए सिस्टम की सच्चाई दिखाती है ‘शेरनी’
सबसे पहले बात कहानी की कर लेते हैं तो ‘शेरनी’ के निर्देशक अमित वी. मसुरकर इससे पहले अपनी फिल्म ‘न्यूटन’ में भी सिस्टम की पोल खोल चुके चुके हैं। ‘न्यूटन’ में जहां नक्सल इलाके में मतदान के माध्मय से अमित वी. मसुरकर ने लोकतंत्र की सच्चाई दिखाई थी, तो इस बार ‘शेरनी’ में जंगल पर हो रही सिस्टम और राजनीति के खेल को उजागर किया है। कहानी का केंद्र फॉरेस्ट ऑफिसर विद्या विंसेंट (विद्या बालन) है, जिसे 6 साल डेस्क जॉब के बाद पहली बार किसी जंगल में फील्ड पोस्टिंग मिली हैं।
ऐसे में फॉरेस्ट ऑफिसर विद्या विंसेंट अपनी नई जाब और जंगल के नए वातावरण के साथ तालमेल बिठा ही रही होती है कि सूबे के रिहायशी इलाके में एक शेरनी का आतंक छाने लगता है। फॉरेस्ट विभाग शेरनी की ट्रैकिंग शुरू करता है, पर इसके साथ ही राजनीति भी शुरू हो जाती है। क्षेत्र के वर्तमान और पूर्व विधायक जहां इसे अपना चुनावी मुद्दा बना लेते हैं, तो शिकारी उस शेरनी को मारने की फ़िराक में होते हैं। पर फॉरेस्ट ऑफिसर के रूप में विद्या विंसेंट उस शेरनी को पकड़ नेशनल पार्क में छोड़ने की जिम्मेदारी निभाना चाहती है।
ऐसे में विद्या विंसेंट अपनी जिम्मेदारी निभा पाएगी या जंगल के सिस्टम के आगे हार जाएगी यही इस फिल्म की कहानी का सार है। यहां हम इसका खुलासा नहीं करेंगे… हमारा उद्देश्य फिल्म का रिव्यू (Sherni Review) देने की है तो आगे हम निर्देशन और अभिनय पर बात कर लेते हैं। निर्देशन की बात कर तो फिल्म शेरनी पूरी तरह से अमित वी. मसुरकर की सिग्नेचर स्टाइल वाली फिल्म है, ये बाकी फिल्मों के शोर शराबे से अलग आपके असली जीवन की सच्चाई दिखाती है।
फिल्म को देखते हुए आपको ये एहसास ही नहीं होता कि आप सिनेमा देख रहे हैं बल्कि ऐसा लगता है जैसे आप ये सब अनुभव कर रहे हैं। बात चाहें फिल्म के किरदारों की करें या डायलॉग की सब कुछ बिलकुल सामान्य और वास्तविक रखे गए हैं। इस फिल्म के जरिए निर्देशक का उद्देश्य जंगल की कहानी के माध्मय से सिस्टम की सच्चाई दिखाना था, जिसमें वो पूरी तरह से सफल दिखते हैं। इस फिल्म को देखते हुए एक आम दर्शक रोमांच से इतर वाइल्ड लाइफ की असली सच्चाई से रूबरू होता है।
विद्या विंसेंट के रूप में विद्या बालन ने जीता दिल
अब बात कर लेते हैं विद्या बालन की, जिसके दम पर फिल्म शेरनी का प्रचार –प्रसार इतने दिनों से किया जा रहा था। तो कह सकते हैं कि विद्या विंसेंट के रूप में विद्या बालन दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रही हैं। हालिया फिल्मों से इतर इस फिल्म में विद्या के किरदार में काफी ठहराव और गंभीरता है। विद्या विंसेट जहां एक तरफ सिस्टम से लड़ रही है तो दूसरी तरफ निजी जिंदगी में पितृसत्ता वाली सोच से भी जूझ रही है और ये संघर्ष विद्या के चेहरे से साफ झलकती है।
विद्या बालन के अलावा बाकी कलाकारों की बात करें तो फिल्म में बृजेंद्र काला सीनियर ऑफिसर बंसल के रूप काफी रोचर लगें हैं, जो अपने काम से अधिक शेरों शायरी और मस्ती में रहते हैं। वहीं फिल्म में विजय राज, नीरज काबी, शरद सक्सेना, इला अरुण और मुकुल चड्ढा जैसे कलाकार भी अपनी-अपनी भूमिका में जंचें है। कुल मिलाकर कहें तो फिल्म में निर्देशक को अपनी कहानी कहने के लिए कलाकारों का पूरा साथ मिला है।
क्यों देखनी चाहिए
अब सवाल ये हो तो कि फिल्म शेरनी क्यों देखनी चाहिए तो इसका पहला जवाब है कि विद्या बालन के फैंस के लिए तो ये फिल्म मस्ट वॉच है। इस फिल्म में विद्या जब भी स्क्रीन पर नजर आती हैं तो अपने संजीदा अभिनय से ध्यान खींच लेती हैं। इसके अलावा अगर आपकी रियलिस्टिक फिल्मों में रूचि है तो फिर ये फिल्म तो आपको जरूर देखनी चाहिए, क्योंकि इस फिल्म की कहानी से लेकर किरदार और सिनेमैटोग्राफी सब कुछ आपको रियल सिनेमा से रूबरी कराते हैं।
क्या हैं ख़ामियां
अब फिल्म रिव्यू (Sherni Review) की बात है तो फिल्म की ख़ामियों की भी बात आनी लाज़मी है, पर देखा जाए तो वैसे तो इसमें सिनेमाई दृष्टि से कोई ख़ामी हमें तो नजर नहीं आती है। हां, लेकिन इतना बता दें कि ये आम मसाला फिल्मों से अलग है, जिसमें लार्जर दैन लाइफ वाली कोई बात नहीं है। ऐसे में हो सकता है कि शुद्ध मनोरंजन या रोमांच के उद्देश्य से फिल्म देखने वालों फिल्म शेरनी कुछ खास रास न आए।
खैर बाकि आपकी मर्जी है कि फिल्म ‘शेरनी’ देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू (Sherni Review) पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।
शानदार रिव्यू .आपने बहुत ही बेहतरीन समीक्षा की है ।
वर्तमान दौर के सरकारी सिस्टम में व्याप्त तंत्र की विसंगतियों एवं मानवता के बाहर और भीतर उग चुके जंगल के पूरे समाजशास्त्र को बेनकाब करने वाली बेहतरीन फ़िल्म
और उसकी समीक्षा भी उसी प्रकार बेजोड़ है