आजादी के नायकों की कहानियां तो हम बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे हैं, वहीं कई ऐसे वीर योद्धा भी हैं जिन्होनें देश की संप्रभुता के रक्षा के लिए जान पर खेलकर अपना योगदान दिया पर उनकी कहानियां हमारी शिक्षण प्रणाली के सीमित पाठ्यक्रम में समा नहीं पाई हैं। ऐसे अनसंग वॉरियर की कहानियों को सामने लाने में सिनेमा बेहतर माध्यम साबित हुआ है और ऐसे ही अनसंग वॉरियर की सच्ची कहानी लेकर आई है फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ Bhuj the pride of India)। अजय देवगन (Ajay devgn) स्टारर इस फिल्म की चर्चाएं बीते दिनों में काफी रही हैं, इसलिए हम अपने रीडर्स के लिए लेकर आए हैं फिल्म भुज का रिव्यू (Bhuj review)…
अनसंग योद्धाओं की अविश्वसनीय बहादुरी की कहानी है ‘भुज’
गौरतलब है कि फिल्म ‘भुज’ 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की उस सच्ची घटना पर आधारित है, जब पाकिस्तानी सेना ने भुज के मधापुर इलाके में भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्रिप को तहस-नहस कर दिया था। ऐसे में स्क्वॉर्डन लीडर विजय कार्णिक ने वहां की लगभग 300 स्थानीय महिलाओं के साथ मुश्किलों से जूझते हुए उस एयरस्ट्रिप को वापस तैयार किया, ताकी प्लेन में सवार सेना के जवान सुरक्षित लैंड हो सके। फिल्म भुज में अजय देवगन भारत-पाक वॅार के इसी रियल लाइफ सुपर हीरो स्क्वॉर्डन लीडर विजय कार्णिक का किरदार निभा रहे हैं।
फिल्म भुज की शुरुआत अजय देवगन के नैरेशन से होती है, जिसमें वो बताते हैं कि किस तरह 1971 का भारत-पाक युद्ध बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान शुरू हुआ। जैसा कि भारत ने पूर्वी पाकिस्तान जोकि अब बांग्लादेश है, उस पर पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) के दमनकारी शासन को समाप्त करने में सहायता की। इसका बदला लेने के लिए पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी क्षेत्रों पर हमला किया, ताकि गुजरात के कई हवाई अड्डों पर बमबारी की। खासकर रणनीति के तहत भुज एयरबेस प्रमुख IAF (भारतीय वायु सेना) को निशाना बनाया गया और उस पर कब्जा करने की कोशिश की गई।
दरअसल, 8 दिसंबर, 1971 की रात को PAF (पाकिस्तान वायु सेना) के जेट विमानों ने भुज में भारतीय वायु सेना की हवाई पट्टी पर 14 से अधिक नेपलम बम गिराए। भुज का एयर बेस और भारतीय लड़ाकू विमान निष्क्रिय हो गए। ऐसे में इंडियन एयर फोर्स को सीमा सुरक्षा बल (BSF) से हवाई पट्टी को बहाल करने की उम्मीद थी, लेकिन समय की कमी थी। ऐसे में इस समय के दौरान भुज के माधापुर गांव के 300 ग्रामीणों, जिनमें ज्यादातर महिलाएं थी, उन्होनें 72 घंटों के भीतर क्षतिग्रस्त एयरबेस की मरम्मत करके देश की रक्षा के लिए कदम बढ़ाने का फैसला किया।
निर्देशन और फिल्मांकन है बेहतर
फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ भुज के अनसंग योद्धाओं की इसी अविश्वसनीय बहादुरी की कहानी को पेश करती है। जाहिर तौर पर ये कहानी अपने आप में बेहद दमदार है। अब बात फिल्म रिव्यू (Bhuj review) की है तो ये समझना जरूरी है कि ये सच्ची कहानी कितनी शिद्दत के साथ पेश की गई। इसलिए बात कर लेते हैं निर्देशन और फिल्मांकन की। तो जैसा कि फिल्म के डिस्क्लेमर में ही इस बात को स्पष्ट कर दिया गया है कि फिल्म भुज सच्ची घटना से प्रेरित है, जिसे रोचक बनाने के लिए कलात्मक छूट ली गई है। इस बात का प्रभाव पूरी तरह से फिल्म में दिखता है।
फिल्म को रोचक बनाने के लिए इसमें गीत-संगीत और कुछ नाटकीय दृश्यों का सहारा लिया गया है। पर देखा जाए तो काफी सीमित है, जिससे फिल्म की विश्वसनीयता पर कोई खास असर नहीं पड़ता है। कुल मिलाकर निर्देशक अभिषेक दुधैया इन अनसंग योद्धाओं और उनकी अविश्वसनीय बहादुरी को बेहतर ढंग से पेश करने में कामयाब रहे हैं। बात करें फिल्मांकन की तो फिल्म के दृश्य और संगीत कमाल के हैं, खासकर 80 प्रतिशन युद्ध की सीन्स वाले इस फिल्म में असली कमाल तो VFX का रहा है, जोकि थिएटर में फिल्म देखने का अलग ही आनंद देता। ऐसे में टीवी स्क्रीन और मोबाईल या लैपटॉप पर देखते हुए दर्शकों को थिएटर में ‘भुज’ न देखने का मलाल हो सकता है।
विजय कार्णिक के किरदार में छा गए अजय देवगन
अब बात करें अभिनय की तो अजय देवगन के फैंस के लिए तो ये पूरी तरह से पैसा वसूल फिल्म है। चूंकि ये ओटीटी का ज़माना है तो आप ये भी कह सकते हैं कि अजय देवगन के फैंस के लिए ये फिल्म Disney plus hotstar का सब्सक्रीप्शन वसूल लेती है। भुज एयरफिल्ड के कमांडिंग अफसर विजय कार्णिक के किरदार में अजय देवगन बेहद दमदार लगे हैं, चाहें बात डायलॉग डिलिवरी की हो या एक एयर ऑफिसर के रूप में उनकी स्क्रीन प्रजेंस की।
अभिनय की कसौटी पर खरे उतरे कलाकार
अब बात बाकी किरदारों की करें तो सुंदरबेन जेठा मधापारया के किरदार में सोनाक्षी सिन्हा (Sonakshi sinha), भारतीय जासूस हिना के किरदार में नोरा फतेही (Nora fatehi) और ‘पगी’ रणछोड़ दास सवा भाई के रूप में संजय दत्त (Sanjay dutt) भी बेहतर लगें हैं। वहीं शरद केलकर (Sharad kelkar) और ऐमी विर्क (Ammy virk) ने अपने किरदारों को बेहद संजीदगी से निभाया है और वो छोटी सी भूमिका में अपनी छाप छोड़ जाते हैं। इसके अलावा अगर बात करें फिल्म की फीमेल लीड प्रणीता सुभाष (Pranitha Subhash) की तो अजय देवगन के अपोजिट प्रणीता सुभाष भी जंची हैं।
क्यों देखनी चाहिए
अब बात करें फिल्म ‘भुज’ क्यों देखनी चाहिए तो अजय देवगन के फैंस तो शायद ये सवाल ही न करें और बाकी लोगों के लिए हमारा जवाब यही है कि अनसंग वॉरियर की सच्ची कहानी को बेहद दमदार तरीक से पेश करती फिल्म ‘भुज’ से बेहतर इस वीकेंड के लिए कोई फिल्म नहीं हो सकती है।
क्या हैं ख़ामियां
फिल्म रिव्यू (Bhuj review) की बात है तो ख़ामियों का जिक्र करना जरूरी हो जाता है, तो बता दें कि रिएलेस्टिक सिनेमा पसंद करने वाले लोगों को ये फिल्म थोड़ी ड्रामेटिक लग सकती है। हालांकि 1 घंटे 53 मिनट की छोटी अवधि की फिल्म देखते हुए आपको अधिक सोच विचार का समय ही नहीं मिलता खासकर जब स्क्रीन पर शानदार VFX वाले दृश्य दिखाई देते हैं।
खैर बाकि आपकी मर्जी है कि फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू (Bhuj review) पढ़ कर फिल्म देखने के आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।