महिला दिवस, स्त्री सशक्तिकरण, स्त्री विमर्श ये ऐसे कुछ शब्द हैं जो मार्च के महीने में हर तरफ सुनाई पड़ते हैं। यहां शब्द इसलिए कहा है कि अभी भी इनका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है और अगर कुछ सरोकार है तो वो है बाजारवाद से। जब ऑफर के नाम कॉस्मेटिक और फैशन ब्रांड धड्ड़ले से अपना प्रोडक्ट बेच पाते हैं और अब हद तो ये हो चली है कि इस दौड़ में सिनेमा भी शामिल हो चुका है। इस बार महिला के दिवस के मौके पर कई कंटेंट रिलीज किए गए हैं, जिसमें से एक है नेटफ्लिक्स की मोस्ट अवेटेड वेब सीरीज बॉम्बे बेगम्स। चलिए इस रिव्यू Bombay Begums review के जरिए जानते हैं कि आखिर खास मौके पर रिलीज हुई ये वेब सीरीज वास्तव में स्त्री विमर्श को कितना सार्थक करती है।
क्या है बॉम्बे बेगम्स की कहानी
सबसे पहले इस वेब सीरीज की कहानी की बात करें तो मुंबई की पृष्ठभूमि पर लिखी इस कहानी की पांच मुख्य किरदार हैं.. रानी (पूजा भट्ट), लिली (अमृता सुभाष), आयशा (प्लाबिता बोरठाकुर), सई (आध्या आनंद) और फातिमा। जिसमें से लिली और सई को छोड़ दें तो बाकि तीन किरदार कॉर्पोरेट जगत से जुड़ी हैं और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हुए करियर और रिश्तों की बाधाओं से लड़ रही हैं।
इसी बीच रानी के (सौतेले) बेटे की कार से एक लड़के का एक्सीडेंट हो जाता है, जोकि बार डांसर लिली का का बेटा है। ऐसे में लिली इस मौके को भुनाना चाहती है और वह रानी को इस घटना को लेकर ब्लैकमेल करती है। वो रानी से कहती है ‘अपने को इज्जत मांगता है’। दूसरी ओर कॉरपोरेट जगत में काम करने वाली आयशा कहती है “सोसाइटी हमारी बॉडी और च्वॉइस के आगे देख ही नहीं सकती है।” यानि कि दो अलग-अलग वर्ग की महिलाएं समाज में अपनी पहचान को लेकर परेशान है, जो समाज उन्हें देह से परे देखने की कोशिश नहीं करता है।
वहीं कहानी का चौथी किरदार फातिमा अपने करियर और पारिवारिक जिम्मेदारी के बीच झूलती नजर आती है। जबकि पूजा की सौतेली बेटी सई बचकाना प्यार और अभिभावको से अनबन के साथ किशोरावस्था के मानसिक द्वंद से गुजर रही रही है। इस तरह से पांचों किरदार अपने आसपास के मौहाल से तंग अपनी पहचान के लिए लड़ रह हैं।
संदेश देने से चूकी अलंकृता
‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ और ‘डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे’ जैसी फिल्मों की निर्देशिका अलंकृता श्रीवास्तव के निर्देशन में बनी इस वेब सीरीज से लोगों को बहुत उम्मीद थी कि ये उनकी ये सीरीज भी कुछ ऐसा मैसेज देने में कामयाब होगी जोकि उनकी पिछली फिल्मों ने किया। पर इस बार अलंकृता शायद खुद ही भटक गई हैं।
अलंकृता का स्त्री विमर्श सिर्फ दैहिक समस्या पर ही उलझ कर रह गया है। उन्होने अपने किरदारों के बागी तेवर के जरिए स्त्री विर्मश की जो बात रखने की कोशिश की है, वो खुद में स्पष्ट नहीं है। असल में देखा जाए स्त्री सशक्तिकरण और बेमतलब के बागीपन में बहुत अंतर होता है और बॉम्बे बेगम्स की पांचों किरदार में सिर्फ बागीपन दिखता सशक्तिकरण नहीं।दरअसल, मी टू मूवमेंट को भुनाने के लिए लिखी गई ये वेब सीरीज अपने मुख्य मुद्दे से खुद भटकती नजर आती है।
अभिनय की कसौटी
वैसे अभिनय की कसौटी पर ये बॉम्बे बेगम्स पूरी तरह से खरी साबित होती हैं। रानी जैसी प्रभावशाली महिला के किरदार में पूजा भट्ट जहां बेहद दमदार नजर आती हैं, तो वहीं बार डांसर और सेक्स वर्कर के किरदार में अमृता सुभाष ने वास्तविक अभिनय से जान डाल दी है। इनके अलावा शहाना, प्लाबिता और आध्या ने भी अच्छा काम किया है। वहीं राहुल बोस, विवेक और मनीष चौधरी जैसे पुरुष कलाकारों के हिस्से अधिक कुछ आया ही नहीं ऐसे में उनके अभिनय कौशल को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है।
क्यों देखनी चाहिए
अगर Bombay Begums review के ईमानदार रिव्यू की बात करें और पूछें कि बॉम्बे बेगम्स क्यों देखनी चाहिए तो इसका सीधा सा एक जवाब होगा कि अगर आप पूजा भट्ट के 90 के दशक वाले फैन हैं और उन्हें दोबारा से पर्दे पर देखने की ख्वाहिश रखते हैं तो ये आपके लिए है। क्योंकि इस वेब सीरीज के जरिए पूजा भट्ट ने 10 साल बाद पर्दे पर शानदारी वापसी की है।
क्या है खामियां
खामियों की बात की जाए तो इसमें कई खामियां हैं.. जैसे कि स्त्री विर्मश की बात कर इसे जिस तरह से पेश किया गया है वास्तव में इस वेब सीरीज को देखने के बाद आपको ऐसा कुछ महसूस नहीं होने वाला है। बाम्बे बेगम्स की पाचों किरदार में से ऐसी कोई महिला नहीं है, जिसके संघर्ष को आप सलाम कर सकें। इसके अलावा कहानी की सूत्रधार के रूप में सई का वाइस ओवर भी खटकता है। छोटी सी बच्ची के जरिए गूढ़ बात कहने की कोशिश असल में बचकाना लगती है।
खैर बाकि आपकी मर्जी है कि वेब सीरीज देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू Bombay Begums review पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।
ये भी पढ़ें-
The Married Woman review: सामाजिक बंदिशों के साए से निकली ‘द मैरिड वुमन’
शानदार रिव्यू❤️