अब तक आपने फिल्मों में दिल बहलाने वाली मनोहर कहानियां तो बहुत देखी होगी पर नेटफ्लिक्स सीरीज ‘रे’ ऐसी रोंगटे खड़े करने वाली कहानियां लेकर आई है, जो आपको दिलों दिमाग को झंकझोर कर रख देगी। जी हां, बता दें कि 25 जून को नेटफ्लिक्स की चर्चित एंथोलॉजी सीरीज रे रिलीज हो चुकी है। मनोज बाजपेयी और अली फजल समेत कई सितारों से सजी ये सीरीज काफी समय से सुर्खियों में है और ऐसे में इसे लेकर फैंस की उम्मीदें भी काफी बढ़ चुकी है। इसलिए हम लेकर आए हैं इसका रिव्यू (Ray review) ताकी इस लंबी अवधि वाली सीरीज को देखने से पहले आप इसके बारे में जान लें।
सबसे पहले बता दें कि नेटफ्लिक्स सीरीज रे दिग्गज फिल्ममेकर सत्यजीत रे के जीवन और काम पर आधारित पर एक एंथोलॉजी सीरीज है, जोकि ‘हंगामा है क्यों बरपा’, ‘फॉरगेट मी नॉट’, ‘बहरूपिया’ और ‘स्पॉटलाइट’ नाम की 4 अलग-अलग तरह की हैरतंगज कहानियां का संकलन है। हर कहानी में दिग्गज कलाकार हैं, जिनका निर्देशन अलग-अलग डायरेक्टर्स ने किया है। अब रिव्यू (Ray review) की बात है तो पहले इन सभी कहानियों के बारे में आपको बता देते हैं।
फॉरगेट मी नॉट Forget Me Not
इस सीरीज की पहली कहानी है ‘फॉर्गेट मी नॉट’ जिसमें अली फजल और श्वेता बसु प्रसाद ने मुख्य भूमिका निभाई है और श्रीजीत मुखर्जी ने इसका निर्देशन किया है। कहानी कुछ इस तरह है कि अली फजल का किरदार इप्सित रामा नैयर एक सक्सेसफुल एंटरप्रेन्योर है, जिसकी सबसे बड़ी ताकत उसकी कंप्यूटर से भी तेज मेमोरी है। पर फिर एक दिन ऐसा कुछ घटता है जिसके बाद उसे सब कुछ भूलने लगता है, जिसके चलते उसकी निजी जिंदगी और करियर सब बर्बाद हो जाता है।
असल में यहां कहानी में ट्विस्ट है कि क्या वाकई में इप्सित को भूलने की बीमारी है या ये किसी की साजिश है। ये राज तो आपको सीरीज देखने के बाद ही पता चले तो ठीक है, क्योंकि यही इस कहानी का असली रोमांच है।
बहरूपिया (Bahrupiya)
अब बात करते हैं दूसरी कहानी ‘बहरूपिया’ की, जिसका निर्देशन भी श्रीजीत मुखर्जी ने ही किया है। इस कहानी का केंद्र एक मेकअप आर्टिस्ट इंद्राशीष (के के मेनन) है, जो बेहद बेचारगी वाली लाइफ जी रहा है। एक तरफ जहां उसका दिल एक महत्वाकांक्षी एक्ट्रेस तोड़ चुकी है, तो वहीं वो अपनी सबसे प्रिय दादी खो चुका है।
इन सबके बीच इंद्राशीष अपने मेकअप स्किल्स को अपनी ताकत बनाता है और अलग-अलग रूप धर अपनी जिंदगी में बदलाव लाना चाहता है। पर उसकी ये कोशिश उस पर तब भारी पड़ जाती है, जब वो एक बाबा को परखने के लिए एक रेपिस्ट का रूप धर उनके पास जाता है।
हंगामा है क्यों बरपा (Hungama Hai Kyon Barpa)
रे की तीसरी कहानी है ‘हंगामा है क्यों बरपा’ जिसमें मनोज बाजपेयी और गजराज राव जैसे दिग्गज कलाकार एक ही फ्रेम में नजर आए हैं। वहीं इस सीरीज का निर्देशन किया है अभिषेक चौबे ने । कहानी कुछ इस तरह है कि एक मशहूर शायर मुसाफिर अली मनोज बाजपेयी की मुलाकात एक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट और पूर्व पहलवान बेग (गजराज राव) से ट्रेन के एक सफर के दौरान होती है। जबकि इससे 10 साल पहले ऐसे ही एक सफर के दौरान मुसाफिर अली बेग के साथ सफर के दौरान उसकी बेशकीमति घड़ी चुराई होती है, जिसके बाद से ही मुसाफिर अली की किस्मत पलटती है और वो मामूली युवक से मशहूर शायर का दर्जा पाता है।
पर 10 साल बाद सफर के दौरान जब मुसाफिर अली को अपनी गलती का एहसास होता है तो वो बेग को लौटा देता है। पर ये कहानी रोचक मोड़ तब लेती है जब बेग अपनी घड़ी को वापस लेने की बजाए उसे एक दूकान पर देने को बोल देता है।
स्पॉटलाइट (Spotlight)
रे की चौथी कहानी है ‘स्पॉटलाइट’, जिसका निर्देशन वासन बाला ने किया है और हर्षवर्धन कपूर मुख्य भूमिका में नजर आए हैं। कहानी कुछ यूं है कि फिल्म एक्टर विक्रम (हर्षवर्धन कपूर) को उनके लुक की वजह से जहां क्रिटिक्स की आलोचना झेलनी पड़ती है तो वहीं उसी लुक के चलते विक लाखों फैन्स के दिलों पर राज भी करता है।
पर विक की लाइफ में बड़ा बदलाव होता है, जब दिव्य दीदी (राधिका मदान) की उसकी लाइफ में एंट्री होती है। इसके बाद सब कुछ बदल जाता है। आखिर दिव्य दीदी का विक की स्टारडम से क्या लेना है ये इस कहानी का असली ट्विस्ट है, जिससे जानने के लिए आपको सीरीज देखनी पड़ेगी। फिलहाल हम आपको रिव्यू (Ray review) की तौर पर इस सीरीज के बाकी पक्ष के बारे में बता सकते हैं।
हैरतंगज कहानियों में दिग्गज कलाकारों का शानदार प्रदर्शन
अंहकार, बदला, ईर्ष्या, धोखे जैसी भावनाओं से प्रेरित ये चारों कहानियां ट्विस्ट, थ्रिल और टर्न से भरी हैं। जिनमें मनोज बाजपेयी, गजराज राव, अली फजल, श्वेता बसु प्रसाद, अनिंदिता बोस, के के मेनन, बिदिता बाग, दिब्येंदु भट्टाचार्य, हर्षवर्धन कपूर, राधिका जैसे कलाकारों अपने अभिनय से रंग भरा है। कहानी की रोचकता को कलाकारों के वास्तविक अभिनय ने और भी बढ़ा दिया है। ये कलाकारों के अभिनय का ही कमाल है कि इसे देखते हुए हर किरदार से सहानुभूति और नफरत दोनो के ही भाव जगते हैं।
बात करें मनोज बाजपेयी की तो ‘हंगामा है क्यों बरपा’ में मुसाफिर अली की भूमिका में वो काफी दिलचस्प लगे हैं। चाहें शायर के रूप में उनके बातचीत करने का दिलकश अंदाज हो या एक चोर की अंदर छुपी ग्लानि की भावना का चेहरे पर दिखना.. मनोज बाजपेयी अपने किरदार में बेहद लाजवाब लगे हैं। वहीं बहुरूपिया में के के मेनन का अभिनय भी संजीदा है। अली फजल और हर्षवर्धन कपूर अपनी-अपनी कहानियों में मेन लीड के रूप में जंचे हैं।
क्या है ख़ामियां
अब फिल्म रिव्यू (Ray review) की बात है तो फिल्म की ख़ामियों की भी बात आनी लाज़मी है, तो बता दें कि नेटफ्लिक्स सीरीज ‘रे’ जिस तरह से महान फिल्ममेकर सत्यजीत रे के नाम पर परोसी गई है, उस तरह का ट्रीटमेंट इसमें देखने को नहीं मिलता है। यहां कहानियां का आइडिया तो लिया गया है, पर विचार नहीं मिलता है। दरअसल, 70-80 के दशक में सत्यजीत रे की रचनाएं बंगाल में फैलते सामंतवादी और पूंजीवादी सोच के खिलाफ एक क्रांति थी, जो जनमानस को जागृत करने के लिए काफी थी। पर इस सीरीज में उनकी कहानियों में ऐसी कोई भी भावना उजागर नहीं होती है।
क्यों देखनी चाहिए
अब सवाल हो कि नेटफ्लिक्स सीरीज ‘रे’ क्यों देखनी चाहिए तो अगर आपको ट्विस्ट एंड टर्न से भरपरू कहानियां रोचक लगती हैं तो ये सीरीज आपके लिए हैं। क्योंकि इसकी हर कहानी का अंत दर्शकों को दंग करने के लिए काफी है। वहीं ‘द फैमिली मैन’ के बाद मनोज बाजपेयी की शानदार अदाकारी भी इस सीरीज में देखने को मिली है, जोकि इसका मुख्य आर्कषण साबित हो सकती है।
खैर बाकि आपकी मर्जी है कि नेटफ्लिक्स सीरीज ‘रे’ देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू (Ray review) पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।