State of Siege Temple Attack review

State of Siege Temple Attack review: कैसी है अक्षरधाम हमले पर बनी अक्षय खन्ना की फिल्म, पढ़ें रिव्यू

वास्तविक घटनाओं पर आधारित फिल्में और सीरीज आजकल काफी पसंद की जा रही हैं, खासकर आर्मी और टास्क फोर्स ऑपरेशन पर आधारित कंटेंट दर्शकों को खूब भा रहे हैं। इस कड़ी में अब साल 2002 में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले की कहानी फिल्म के रूप में जी5 (Zee5) पर पेश की गई है, जिसे नाम दिया गया है ‘स्टेट ऑफ़ सीज: टेम्पल अटैक’। अक्षरधाम हमले पर बनी ये फिल्म बीते कई दिनों से चर्चाओं में हैं, ऐसे में ये जानना लाज़मी है कि आखिर रियलेस्टिक सिनेमा के नाम पर परोसी गई ये फिल्म वास्तव में कितनी असरदार है। इसलिए हम लेकर आए हैं इसका रिव्यू State of Siege Temple Attack review…

स्टेट ऑफ सीज

अक्षरधाम हमले की पृष्ठभूमि पर रची हॉस्टेज ड्रामा फिल्म 

सबसे पहले फिल्म ‘स्टेट ऑफ़ सीज: टेम्पल अटैक’ की पृष्ठभूमि की बात करें तो एक तरफ जहां डिस्क्लेमर में इसे ‘एक सच्ची घटना’ से प्रेरित फिल्म बताकर मेकर्स ने सीधे तौर पर अक्षरधाम मंदिर पर आधारित फिल्म बताने से बचने की कोशिश की है, तो वहीं दूसरी तरफ इसका प्रचार प्रसार अक्षरधाम हमले पर फिल्म के रूप में किया गया है। यही विरोधाभाष इस पूरी फिल्म पर हावी होता दिखा है। इससे भी कमाल की बात है कि पूरी तरह से भारतीय पृष्ठभूमि वाले इस फिल्म की पटकथा विदेशी लेखकों विलियम बोर्थविक और साइमन फैनराज़ो ने लिखी है, जिसके चलते ये पूरी तरह से हॉस्टेज ड्रामा बनकर रग गई है।

अब कहानी की बात करें तो फिल्म ‘स्टेट ऑफ़ सीज: टेम्पल अटैक’ की शुरूआत साल 2001 में जम्मू-कश्मीर के कूपवाड़ा में एनएसजी और आतंकवादियों के बीच हुए मुठभेड़ से होती है। जिसमें एनएसजी के मेजर हनूत सिंह अपनी जानपर खेलकर किसी तरह से कुख्यात आतंकी अबू हमज़ा के राइटहैंड बिलाल नाइको को पकड़ने में कामयाब हो जाता है। पर इस दौरान मेज हनूत के दोस्त और कमांडो की मौत हो जाती है, ऐसे में इस मुठभेड़ के बाद मेजर हनूत के मन में कचोट रह जाती है। कहानी आगे बढ़ती है और मेजर हनूत को गुजरात के मुख्यमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी मिलती है।

Akshaye Khanna film state of siege

इसी बीच आतंकी हमज़ा नाइको को छुड़वाने के लिए एक साजिश रचता है और चार लड़कों की टीम कृष्णा धाम मंदिर पर हमला करने निकलती है। ये लोग अंधाधुंध गोलीबारी करते हुए मंदिर परिसर में मौजूद लोगों को बंधक बनाते हैं और उन बंधकों के बदले आतंकी नाइको को छुड़वाने की मांग की जाती है। इसके बाद आगे की कहानी एनएसजी और आतंकियों के बीच मुठभेड़ की है.. किस तरह से मेजर हनूत आतंकियों के कब्जे से बंधकों को छुड़ा पाता है। कुल मिलाकर ये अक्षरधाम मंदिर हमले की पृष्ठभूमि पर रची एक हॉस्टेड ड्रामा फिल्म है।

बॉलीवुड ड्रामा फिल्म के मोह से नहीं बच पाए केन घोष

अब रिव्यू (State of Siege Temple Attack review) की बात है तो निर्देशन, अभिनय जैसी बाकी पक्षो पर भी बात कर लेते हैं। ‘फिदा’ और ‘चांस पे डांस’ जैसी टिपिकल बॉलीवुड फिल्मों के निर्देशन से अपनी पहचान बनाने वाले केन घोष ने ‘स्टेट ऑफ़ सीज: टेम्पल अटैक’ का निर्देशन किया है। देखा जाए तो इस बार केन घोष ने थोड़ा रियलिस्टिक होने की कोशिश की थी पर इस फिल्म में भी काफी बॉलीवुड टच आ ही गया है। ये कुछ ऐसा ही कि आम हिंदी फिल्मों के दर्शक इसका एक सीन देख आने वाले सीन के बारे में बता सकते हैं। विदेशी लेखकों की सेवा लेने बावजूद केन घोष खुद इस फिल्म को टिपिकल बॉलीवुड ड्रामा फिल्म से इतर कुछ नही बना सके हैं।

अक्षय खन्ना का डिजिटल डेब्यू रहा बेअसर

इस फिल्म एक ख़ास बात ये भी है कि बॉलीवुड अभिनेता अक्षय खन्ना ने इससे डिजिटल एंटरटेनमेंट की दुनिया में डेब्यू किया है। ऐसे में दूसरे बड़े बॉलीवुड स्टार्स की तरह अक्षय खन्ना के ओटीटी डेब्यू से भी फैंस को बड़ी उम्मीदें लग रखी थीं। पर फिल्म देखकर ऐसा कुछ भी परिणाम नहीं मिलता है। इस फिल्म में अक्षय के पास मनोज बाजपेयी के ‘द फैमिली मैन’ जैसा करिश्मा करने का मौका था, पर अक्षय खन्ना इससे चूकते नजर आ रहे हैं।

बाकी कलाकारों की बात करें तो अभिमन्यु सिंह, विवेक दहिया, गौतम रोडे, मंजरी फड़नीस और समीर सोनी अपने-अपने किरदारों में ठीक ही लगें हैं।

क्या हैं ख़ामियां

बात रिव्यू (State of Siege Temple Attack review) की है तो ख़ामिया की बता आनी लाज़मी है तो बता दें कि इस फिल्म की सबसे बड़ी ख़ामी यही है कि ये वास्तविकता और कल्पना के बीच उलझी हुई सी लगती है। फिल्म में घटनाक्रम से लेकर परिस्थितियां सब कुछ 2002 में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले की जैसी रखी गई हैं, पर सीधे तौर पर समानता से बचने के लिए मंदिर परिसर का नाम और दूसरे कुछ बदलाव के जरिए मेकर्स ने अपना दामन बचाने की कोशिश की है और यही कोशिश थोड़ी बचकाना लगती है।

क्यों देखनी चाहिए

एनएसजी के एक्शन दृष्य और हॉस्टेज सिचएशन ड्रामा के साथ ये फिल्म ठीकठाक टाइम पास है। साथ ही इस फिल्म एक अच्छी बात ये है कि इसमें किसी तरह का एक्स्ट्रा मसाला नहीं डाला गया है, जिसके चलते ये उबाऊ नहीं लगती है।

खैर बाकि आपकी मर्जी है कि फिल्म ‘स्टेट ऑफ़ सीज: टेम्पल अटैक’ देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू (State of Siege Temple Attack review) पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।

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