ये रियलस्टिक सिनेमा का युग है और इस नए दौर के सिनेमा की अच्छी बात ये है कि देर से ही सही पर अब जातिगत संघर्ष जैसे वास्तविक मुद्दे हिंदी सिनेमा के विषय बन रहे हैं। जातिगत दुर्व्यवहार और यौन हिंसा का ऐसा ही काला सच लेकर आई है ज़ी5 फिल्म ‘200 हल्ला हो’ और हम आपके लिए लेकर आए हैं इसका रिव्यू (200 Halla ho Review)…
बता दें कि ‘द ग्रेट इंडियन बटरफ्लाई’ और ‘म्यूजिक टीचर’ जैसी फिल्में बनाने वाले सार्थक दासगुप्ता इस बार जातिगत संघर्ष की सच्ची कहानी लेकर आए हैं। असल में फिल्म ‘200 हल्ला हो’ साल 2004 में महाराष्ट्र में घटित एक वारदात से प्रेरित है, जब नागपुर के कोर्ट में 200 दलित महिलाओं ने एक दुष्कर्मी को अदालत के अंदर जान से मार डाला था। बताया जाता है कि उस दुष्कर्मी पर कई और दलित बच्चियों के रेप का भी आरोप था। उस वक्त में इस घटना पूरे देश को हिला दिया था। बाद में इस पर किताबें भी लिखी गई, वहीं अब सार्थक दासगुप्ता ने इसे सिनेमा के रूप में पेश किया है।
जिसमें सार्थक दासगुप्ता काफी हद तक सफल होते दिख रहे हैं क्योंकि ये फिल्म जातिगत दुर्व्यवहार और यौन हिंसा के मुद्दे को बेहद संवेदनशीलता के साथ प्रभावी तरीके से पेश करती हैं। फिल्म सिनेमाई मसाले से इतर सालों से चले रहे जातिगत संघर्ष को बारीकी से दर्शाती है, जोकि फिल्म के डायलॉग्स के माध्यम से उजागर होता है। जैसे कि जब फिल्म की नायिका (रिंकू घोष) कहती है, ‘जाति के बारे में क्यों न बोलूं सर, जब हर पल हमें हमारी औकात याद दिलाई जाती है’ । या फिर जब वो न्यायधीष को याद दिलाती है कि ‘संविधान में लिखे शब्दों को सिर्फ याद रखना जरूरी नहीं, बल्कि उनका इस्तेमाल करना ज्यादा जरूरी है’।
फिल्म ‘200 हल्ला हो’ एक घटना के माध्यम से पूरे दलित वर्ग के दर्द को बयां करती है कि कैसे आज के आधुनिक युग में भी दलितों के साथ ज्यादती की जाती है। दलित समाज का बड़ा वर्ग आज भी नेताओं के लिए वोट बैंक से अधिक कुछ नहीं है, जहां दलितों को न्याय दिलाने के नाम पर राजनीति तो खूब होती है, पर वास्तव में मदद के लिए आगे नहीं आता। इसके अलावा ये फिल्म दलित समुदाय के दो अलग विचारधारा वाले वर्ग की सोच भी बयां करती है, जिसमें एक समुदाय अपने समाज के लिए न्याय की आस में संघर्ष करता नजर आता है, तो दूसरा इस सबसे दूर अपनी प्रगतिशील जीवन में व्यस्त है।
इस तरह से देखा जाए तो ये फिल्म परत दर परत दलित संघर्ष और जातिगत विषमता को बयां करती है। फिल्म का ट्रीटमेंट काफी अच्छा है, जिसके चलते एक विभत्स घटना पर आधारित होने के बावजूद ये फिल्म आपको कहीं भी विचलित नहीं करती है, बल्कि समाज में हो रहे जातिगत दुर्व्यवहार और यौन हिंसा के लिए सोचने को मजबूर करती है।
ये तो रही बात फिल्म के विषय और फिल्मांकन की अब फिल्म रिव्यू की बात है तो अभिनय पक्ष पर भी बात कर लेते हैं। तो इस फिल्म में वेटरन एक्टर अमोल पालेकर के साथ रिंकू राजगुरु, बरुण सोबती और साहिल खट्टर जैसे दमदार कलाकारों की स्टार कास्ट है, जिन्होनें अपने अभिनय ये इस फिल्म जान डाल दी है। खासकर अगर बात अमोल पालेकर की करें तो आज भी उनकी स्क्रीन प्रजेंस और संवादयगी कमाल की है।
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि फिल्म ‘200 हल्ला हो’ नए दौर का नया सिनेमा लेकर आई है, जो जातिगत संघर्ष जैसे मुद्दे को प्रभावी ढंग से पेश करती है।
Excellent topic .castism is a burning truth of our indian socity .If the indian cinema reflect its truth is so appreciable .