The girl on the train review

The girl on the train review: विदेशी किताब पर बनी परिणीति की देसी फिल्म, देखने से पहले पढें रिव्यू

क्राइम-थ्रिलर से लेकर रोमांटिक कॉमेडी और फैमिली ड्रामा तक, हर मिजाज के नए-नए कंटेट पेश कर नेटफ्लिक्स, भारतीय दर्शकों के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता बना चुका है। इसी कड़ी में हाल ही में रिलीज हुई है परिणीति चोपड़ा की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘द गर्ल ऑन द ट्रेन’। फिल्म के ट्रेलर और कैरेक्टर प्रोमो ने तो फैंस की दिलचस्पी काफी पहले से ही बढ़ी रखी थी, पर लगभग दो घंटे की लंबी अवधि वाली इस फिल्म को देखने से पहले लोग इस बारे में जान लेना चाहते हैं। अगर आप भी कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं इस रिव्यू को जरूर (The girl on the train review) पढ़ें ताकि आपको संक्षेप में इस फिल्म की खूबियां और खामियां पता चल सकें।

गौरतलब है कि ये फिल्म ब्रिटिश लेखिका पॉला हॉकिन्स के 2015 में प्रकाशित उपन्यास द गर्ल ऑन द ट्रेन पर आधारित है, जिस पर साल 2016 में हॉलीवुड में साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म भी बन चुकी है और वो बॉक्स ऑफिस पर काफी सफल रही है। कहानी की बात करें तो ये मर्डर मिस्ट्री तीन महिलाओं के जीवन के जरिए घरेलू हिंसा, शराब और ड्रग्स के तानेबाने पर आधारित है। फिल्म का केंद्र है लंदन में रहने वाली मीरा कपूर (परिणीति चोपड़ा), जिसकी निजी और प्रोफेशनल लाइफ पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है।

फिल्म की कहानी

एक समय में मीरा कपूर नामी वकील रह चुकी है, पर एक एक्सीडेंट में उसका मिसकैरेज होता है, जिसके बाद वो नशे के गिरफ्त में ऐसे जाती है कि पति शेखर (अविनाश तिवारी) से तलाक हो जाता है और बिना किसी मकसद वो ट्रेन में हर रोज सफर करने लगती है। इसी सफर करने के दौरान मीरा खिड़की से एक घर देखती है, जिसमें नुसरत (अदिति राव हैदरी) अपने पति के साथ एक खुशहाल जिंदगी जाती है, यह वही जिंदगी है जो कि मीरा अपने लिए चाहती थी।

अब कहानी में अचानक ट्विस्ट तब आता है जब एक रोज नुसरत का मर्डर हो जाता है और मीरा इस मर्डर केस में बुरी तरह से फंस जाती है। दूसरी तरफ मीरा खुद एम्नेसिया से पीड़ित है, जिसके चलते उसे बीते दिन की कोई बात याद नहीं रहती है। ऐसे में सच्चाई क्या है, क्या मीरा ने खुन्नस में नुसरत का कत्ल किया है या कातिल कोई और है… और क्या मीरा की लाइफ वापस पटरी पर आती है कि नहीं ये सब कुछ, आपको फिल्म देखने के बाद पता चल जाएगा। क्योंकि हम फिल्म की कहानी, अभिनय के साथ कमजोर और मजबूत पक्ष की बात कर फिल्म का ईमानदार रिव्यू (The girl on the train review) देने की कोशिश कर हैं, लेकिन इस फिल्म का सस्पेंस बिल्कुल खत्म नहीं करेंगे।

अभिनय की कसौटी

बात करें अगर अभिनय की तो इस फिल्म में परिणीति के पास काफी कुछ कर गुजरने की गुंजाइश थी, क्योंकि इस क्राइम थ्रिलर और महिला क्रेंद्रित फिल्म में सबकी निगाहें उन पर ही टिकी थीं। पर देखा जाए तो बब्ली गर्ल इमेज वाली परिणीति इस मौके को भुनाने में चूक गई हैं, क्योंकि सिर्फ मेकअप के जरिए चेहरे पर भाव भंगिमा नहीं लाई जा सकती है। इस फिल्म में उनका किरदार जितना सशक्त था उनकी अदाकारी उसके मुकाबले कमजोर रही है।

वहीं दूसरे किरदारों के रूप में अदिति राव हैदरी, कीर्ति कुल्हारी और अविनाश तिवारी का काम अच्छा है।

क्या है ख़ामियां

फिल्म की सबसे बड़ी खामी इसका विदेशी परिवेश, क्योंकि जब इसका हॉलीवुड वर्जन फिल्म नेटफ्लिक्स और दूसरे प्लेटफॉर्मों पर उपलब्ध है ही तो ऐसे में अगर आपे इसे हिंदी दर्शको के लिए बना रहे हैं तो कम से कम इस फिल्म की कहानी को तो भारतीय देश-काल-परिवेश में ढाला जानी चाहिए था। पर यहां लेखक-निर्देशक ने सभी किरदारों तथा घटनाओं को ब्रिटेन में ही रखा है, जिसकी वजह से फिल्म का देसी दर्शकों से कनेक्ट हो पाना मुश्किल है। वहीं ओटीटी प्लेट फॉर्म के हिसाब से फिल्म थोड़ी लंबी है, जिसे एडिट कर आसानी से उपयुक्त बनाया जा सकता था, पर चूक यहां भी हो गई। इसके बाद रही सही कसर तो फिल्म के बेमतलब के गानों ने पूरी कर दी है।

क्यों देखनी चाहिए

अब हम बात करेंगे कि ये फिल्म क्यों देख जानी चाहिए तो अगर आपको मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्म रोचक लगती है तो बेशक आप इस फिल्म को देख सकते हैं, क्योंकि इसका क्लाइमेक्स सोच पाना वाकई में मुश्किल है। इसलिए अगर आप मनोरंजन के लिए कुछ देखना चाहते हैं तो फिर ये अच्छा टाइम पास साबित होगी, हालांकि सिर्फ तब जबकि आपने पौला हॉकिन्स की किताब द गर्ल ऑन द ट्रेन न पढ़ी है और न ही इसका हॉलीवुड वर्जन देखा हो तो।

खैर बाकि आपकी मर्जी है कि फिल्म देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू The girl on the train review पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।

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3 thoughts on “The girl on the train review: विदेशी किताब पर बनी परिणीति की देसी फिल्म, देखने से पहले पढें रिव्यू

  1. फिल्मों की लोकप्रियता का अपना एक अलग समाजशास्त्र होता है
    इसी समाजशास्त्र के मद्देनजर की गई यह बेहतरीन समीक्षा है

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