OK computer review in Hindi

Ok computer review: तकनीकि, हास्य और फिलॉसिफी का संगम ले डूबा फैंस की उम्मीद

भारतीय सिने प्रेमियों को साइंस फिक्शन के नाम पर अब तक ‘मिस्टर इंडिया’ और ‘टार्जन द वंडर कार’ जैसी फिल्मों से ही दिल बहलाना पड़ा है। ऐसे में जब पता चला कि तुम्बाड जैसी कल्ट फिल्म के डायरेक्टर आनंद गांधी OK Computer जैसी साइंस फिक्शन वेब सीरीज बना रहे हैं तो लगा कि इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में साइंस फिक्शन का अकाल खत्म हो जाएगा। इस उम्मीद को हवा दी ‘ओके कंप्यूटर’ के ट्रेलर ने जिसमें जैकी श्रॉफ, राधिका आप्टे और विजय वर्मा जैसे कलाकारों को देख फैंस को इससे ढेरों उम्मीदें हो चली। अब जब 26 मार्च को वेब सीरीज ओके कंप्यूटर, डिज्नी हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही है, ऐसे में बारी है रिजल्ट की.. क्या ये फैंस के उम्मीदों को पूरी कर पाई या नहीं? इसलिए हम लेकर आए हैं इस सीरीज का रिव्यू Ok computer review..

भविष्य की कहानी में ह्यूमर का तड़का

हम इंसानों के लिए भविष्य से रोमांचक क्या हो सकता है और अब तो तकनीकि के जरिए भविष्य को नियंत्रित करने का सपना भी देखा जा रहा है। ऐसे में रोबोटिक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकि टर्म उन लोगों को भी रोमाचित करने लगे हैं जिनका कल तक साइंस से कोई वास्ता ही नहीं था। तकनीकि और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में लोगों की इसी बढ़ती दिलचस्पी को देख आनंद गाँधी ने गढ़ी है भारतीय दर्शकों के लिए लेकर साइंस फिक्शन ‘ओके कंप्यूटर’ की कहानी। 6 एपिसोड वाले इस सीरीज को रोचक बनाने के लिए इसमें हास्य भी डाला गया है।

कहानी की बात करें तो ये आज से 10 साल बाद के भविष्य की कहानी है.. जिसमें 2031 में रोबोट्स, सेल्फ-ड्राइविंग कार, होलोग्राम द्वारा ट्रैफिक नियंत्रण और वर्चुअल क्लोनिंग जैसे चीजें आम बात हो गई हैं। पहले एपिसोड की शुरूआत ही सेल्फ ड्राइविंग कार से एक्सीडेंट में एक आदमी की मौत से होती है। मामले की जांच के लिए साइबर सेल का एसीपी साजन कुंडू क्राइम सीन पर पहुंचता है, उसे जांच में ज्वाइन करती है रोबोट्स के अधिकारों की हिफ़ाज़त करने वाली संस्था PETER के लिए काम करने वाली लक्ष्मी सूरी ।

web series OK Computer

जांच के दौरान साजन और लक्ष्मी में बार-बार टकराव की स्थिति बनती है, क्योंकि दोनो के विचार और कार्यशैली एक दूसरे के विपरित हैं। साजन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नफ़रत है, तो वहीं लक्ष्मी का मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इंसानो को नुकसान नहीं बल्कि सहयोग करते हैं। अब सवाल ये है कि उस सेल्फ ड्राइविंग कार को जब कोई चला ही नहीं रहा था, तो कातिल कौन हो सकता है.. इसकी जांच के दायरे में इंसान से लेकर तकनीक तक सब आते हैं। कत्ल के राज के साथ सीरीज का सस्पेंस जुड़ा है, इसलिए इसका खुलासा हम नहीं करेंगे। हमारी कोशिश है आपको इस सीरीज का ईमानदार रिव्यू (Ok computer review) देन की।

मजेदार के चक्कर में हो गया छिछालेदर

किसी चीज को बेहतर बनाने के लिए इंग्रेडिएंट्स के साथ ही ट्रीटेमेंट यानि की बनाने के तरीका भी काफी हद तक मायने रखता है। क्योंकि ट्रीटमेंट सही नहीं रखा जाए तो बेहतर इंग्रेडिएंट्स भी अच्छा रिजल्ट नहीं दे पाते हैं। ओके कंप्यूटर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, साइंस फिक्शन पर आधारित अच्छी कहानी चुनी गई, जिसमें फैक्ट्स और लॉजिक्स भर-भर कर डाला गया और उपर से ह्यूमर का तड़का भी लगाया गया, पर जो बन कर तैयार हुआ वो मजा नहीं सजा देता है।

Vijay verma in OK Computer

खासकर इसमें हास्य की जो अति की गई है वो बेहद अखरती है। ओके कंप्यूटर का हर किरदार अपने आप में अजीब है, उसकी बातें और हरकतें आपका मनोरंजन करने के बजाए परेशान करती हैं। जैसे कि डीसीपी के किरदार में विभा छिब्बर अपना गुस्सा नियंत्रण करने के लिए जानू, बेबी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करती हैं तो वहीं एक पुलिस इंस्पेक्टर पब्लिक स्पीकिंग से इतना डरता है कि उसे एसीपी के कान में फुसफुसाना पड़ता है।

हास्य के अलावा इसमें जबदस्ती की फिलॉसिफी भी डालनी की कोशिश की गई है, जैसे ये सीरीज मानव अस्तित्व, संसार और ब्रह्मांडों के सवाल-जवाब तक जाती है। इस तरह से ये सीरीज फैंस को उन सवाल जवाब में उलझाती है, जिन सवालों का जवाब हजारों बरसों से अनसुलझा है। कुल मिलाकर अच्छा और मजेदार बनाने के चक्कर में अच्छी खासी स्टोरी आइडिया का छिछालेदर किया गया है।

अजीब किरदार में मारी गई अदाकारी

इस सीरीज में साजन के किरदार में विजय वर्मा का सबसे पहला डायलॉग है.. ‘मैं यहां क्या कर रहा हूं’ और सीरीज देखने के बाद विजय का ये सवाल ही याद रह जाता है कि आखिर वो इस सीरीज में क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। गली ब्वॉय जैसी फिल्म में अपने अभिनय के लिए अमिताभ बच्चन से तारीफ पाने वाले विजय वर्मा अब खुद फैंस के बीच दिग्गज अभिनेता की पहचान बना चुके हैं। ऐसे में ओके कंप्यूटर में उनका किरदार और अभिनय दोनो निराश करता है।

दरअसल, इस सीरीज को अधिक ह्यूमरस बनाने के लिए जिस तरह के किरदार गढ़े गए हैं, उनमें अभिनय नहीं ड्रामा दिखता है। इस सीरीज की कहानी ही नहीं यहां किरदार भी काल्पनिक लगते हैं। अभिनय में वास्तविकता की तो बात ही छोड़ दीजिए, वो आपको कभी कभी बर्दाश्त से भी बाहर लगने लगता है।

बेहतरीन फिल्ममेकर्स ने किया निराश

अगर बात ओके कंप्यूटर की खामियों की करें तो अभिनय के अलावा ध्यान निर्देशन और लेखन की कमियों पर जाता है। क्योंकि जब इस प्रोजेक्ट से आनंद गांधी जैसा नाम जुड़ा हो तो उम्मीद तो बेहतर की होगी, पर परिणाम में बेहतर क्या औसत भी नहीं मिला है। बता दें कि कि ओके कंप्यूटर में आंनद गांधी क्रिएटर प्रोड्यूसर है और उन्होंने निर्देशक जोड़ी पूजा शेट्टी-नील पागेडार के साथ मिलकर इसकी कहानी भी लिखी है।

चूंकि ये तकनीकी पर आधारित साइंस फिक्शन वेब सीरीज है, ऐसे में कल्पनाशीलता तो इसका आधार है, पर कल्पना करते वक्त देशकाल का भी विचार कर लेते तो ठीक रहता। क्योंकि 2031 आने में इतना भी वक्त नहीं बचा कि कि जिस देश में रास्तें तक ठीक न हो वहां सेल्फ ड्राइविंग कार फर्राटे मारते नजर आने लगें। खैर क्रिएटिविटी के नाम पर बहुत कुछ जायज है, पर उस क्रिएटिविटी से कुछ बेहतर निकल कर आना चाहिए, जोकि यहां नहीं हो सका है।

क्यों देखनी चाहिए ओके कंप्यूटर

अब बात करें कि क्यों देखनी चाहिए वेब सीरीज ओके कंप्यूटर, तो अगर आप विजय वर्मा, राधिका आप्टे या जैकी श्रॉफ में से किसी के डाई हार्ड फैन हैं तो आप उनके नाम पर ये सीरीज जरूर देख सकते हैं। या फिर अगर आपको किसी भी तरह का कॉमेडी कंटेंट पसंद आता है तो भी आप इसे खुशी-खुशी हज़म कर लेंगे। इसके अलावा किसी और उम्मीद के साथ तो आप ये सीरीज बिलकुल भी मत देखिएगा। क्योंकि इसकी जगह साइंस फिक्शन के नाम पर मिस्टर इंडिया देख लें वहीं बेहतर होगा.. कम से कम वहां मनोरंजन तो मिलेगा।

खैर बाकि आपकी मर्जी है कि वेब सीरीज देखनी है या नहीं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये रिव्यू Ok computer review पढ़ कर आपके चुनाव का काम कुछ हद तक आसान हो गया होगा।

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