Karnan

Karnan: आखिर क्या है धनुष की फिल्म ‘कर्णन’ में, जिसने सबको बनाया दीवाना

सिनेमा क्या है… वो जो दिल बहला दे और जिसे देख आप दुनिया भूल जाए या वो, जो आपको आपकी ही असल दुनिया दिखाए ? दरअसल, ये सवाल तब लाज़मी हो जाता है, जब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर साउथ की ‘कर्णन’ जैसी फिल्में रिलीज होती हैं। असल में बीते सप्ताह ओटीटी पर कई फिल्म में रिलीज हुई हैं, जिसमें जी5 पर रिलीज हुई बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म राधे भी शामिल है। देखा जाए तो राधे बड़े शोर शराबे के साथ रिलीज हुई, पर दर्शकों द्वारा पूरी तरह से नाकार दी गई, वहीं इसके ठीक एक दिन बाद अमेज़न प्राइम पर रिलीज हुई फिल्म कर्णन (Karnan) जिसकी शुरूआत में तो उतनी चर्चा नहीं होती है, पर जैसे-जैसे लोग इस फिल्म को देखते जाते हैं, इसकी चर्चा जोर पकड़ने लगती है।

Dhanush film Karnan

फिर एक सप्ताह के भीतर ये फिल्म सिर्फ ओटीटी नहीं पूरे सिनेमाई जगत के आकर्षण का केंद्र बन जाती है। ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर इस फिल्म में ऐसा क्या है जिसने सबको दीवाना बना रखा है।

जातीय संघर्ष के बीच अस्तित्व बचाने की कवायद है कर्णन

दरअसल, फिल्म कर्णन (Karnan) की कहानी मुख्यतया जातीय संघर्ष की कहानी है, जो 90 के दशक में तमिलनाडु के गांव में हुई घटना से प्रेरित है। पहले हम बात यहां इस फिल्म की कहानी कर लेते हैं। इसमें एक निचली जाति के एक गांव को दर्शाया गया है, जो कि सालों से मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। जैसे कि इस गांव में कभी भी बसें नहीं रूकती, इसलिए उन्हें दूसरे गांव के बस स्टैंड जाना पड़ता है और वो गांव ऊंची जाति के लोगों का है। ऐसे में इस पिछड़े हुए गांव के लोगों को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है और ऊंची जाति के लोगों की दंभ का सामना भी करना पड़ता है। पर अपनी पुरानी मान्यताओं के साथ इस गांव के लोग अपने में ही कमोबेश खुशहाल जीवन बीता रहे हैं, सिवाय कर्णन के।

Dhanush starer film Karnan

कर्णन जो इस गांव का युवा और जोशीला लड़का है, उसे गांव का पिछ़डापन देखा नहीं जाता है और वो अक्सर इसके लिए आवाज उठाता रहता है। ऐसे में एक दिन जब उसके गांव से गुजर रही है बस एक प्रेग्नेंट औरत के लिए नहीं रूकती है, तो गुस्से में आकर वो उस बस को तोड़ देता है, जिसके बाद पुलिस उसके गांव में दबिश देने आती है। इसके बाद फिर परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि इस गांव का सुख-चैन सब छिन जाता है। लेकिन कर्णन के संघर्ष के बदौलत आखिर में गांव के लोगों को मुलभूत सुविधाएं भी मिलती हैं और सिर उठाकर जीने का हक भी।

सच्ची घटना से प्रेरित वास्तविक सिनेमा की नायाब पेशकश

वैसे तो Karnan की कहानी बड़ी सीधी सी है कि गांव का एक लड़का हीरो बनकर उभरता है और गांव की तस्वीर बदल देता है। पर फिल्म में जिस तरह से इस कहानी को फिल्माया गया है वो बहुत कमाल का है। जानवरों से लेकर प्राकृतिक दृश्यों का सांकेतिक प्रयोग और बेहद सरल प्रेम कहानी के साथ ये फिल्म एक सच्ची घटना को सिनेमा का रूप देने में सफल रही है। असल में, ये फिल्म 1995 में तमिलनाडु के कोडियाकुलम गांव की घटना से प्रेरित है, जहां कथित ऊंची जाति के लोगों के कहने पर भारी संख्या में पुलिसबल ने गांव में पहुंचकर वहां रहने वाले दलितों को बुरी तरह पीटा था।

 

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इस सच्ची घटना को आधार बना कर मारी सेल्वाराज ने फिल्म कर्णन की कहानी लिखी है और उसे बेहतरीन तरीके से सिनेमाई अक्स में उतारा भी है। फिल्म का डायरेक्शन, कैमरा वर्क, बैकग्राउंड म्यूजिक सबकुछ इतना कमाल का है इसे देखते हुए आपको भाषाई विभिन्नता का भान नहीं रहता है। हां, हो सकता है शुरूआत में फिल्म देखते हुए आपको भाषाई और क्षेत्रीय विभिन्नता से थोड़ी उलझन हो पर जैसे कहानी आगे बढ़ती है आप इसके साथ बंधते चले जाते हैं। आपकी संवेदनाए इसके किरदारों संग इस कदर जुड़ जाती हैं कि वो फिल्म के आखिर तक इसे जोडें रखती है।

धनुष ने दिखाया अभिनय कला का सातो रंग

धनुष, साउथ के वास्तविक सिनेमा के असली हीरो है, जिनकी पहचान असुरन और कर्णन जैसी फिल्मों से पुख्ता होती चली है। फिल्म कर्णन (Karnan) में नायक के रूप में उनके अभिनय का हर रंग खिलकर आया है। वैसे धनुष के अलावा फिल्म कर्णन में जो कलाकार सबसे अधिक प्रभावी लगा है वो आईपीएस बने नटराजन सुब्रमण्यम। नकारात्मक किरदार में नटराजन सुब्रमण्यम का गुस्सा और कुटिलता दर्शकों को डराने के लिए काफी है। धनुष और नटराजन सुब्रमण्यम के अलावा बाकी कलाकारों ने भी अपने अभिनय से फिल्म को वास्तविक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

Karnan movie

कुल मिलाकर फिल्म कर्णन (Karnan) वास्तविक सिनेमा की नायाब बानगी पेश करता है। यही वजह है कि ये फिल्म इस वक्त डिजिटल एंटरटेनमेंट की दुनिया में सनसनी मचा रहा है। अगर अब तक आपने ये फिल्म नहीं देखी है तो आप इसे अमेज़न प्राइम पर देख सकते हैं।

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